Tuesday, November 25, 2014

jokes

खरीददार - भैंस की कीमत पांच हजार रुपये तो बहुत अधिक हैं |

मालिक- वह कैसे ?

खरीददार - इसकी एक आंख जो नहीं हैं |

मालिक- आपको इससे दूध लेना है या कसीदाकारी करानी हैं |

Monday, November 24, 2014

विज्ञान प्रश्नोत्तरी


सबसे बड़ी आँखें किस स्तनधारी प्राणी की होती है? --- हिरण
आज कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के उत्सर्जन में सर्वाधिक योगदान करने वाला देश है? --- संयुक्त राज्य अमरीका
निम्नलिखित में से किस उद्योग में अभ्रक कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त होता है? --- विद्युत
विद्युत प्रेस का आविष्कार किसने किया था? --- हेनरी शीले ने
प्रेशर कुकर में खाना जल्दी पक जाता है, क्योंकि? --- प्रेशर कुकर के अन्दर दाब अधिक होता है
दाब बढ़ाने पर जल का क्वथनांक? --- बढ़ता है
'प्रत्येक क्रिया के बराबर व विपरीत दिशा में एक प्रतिक्रिया होती है।' यह न्यूटन का --- तीसरा नियम है
ताँबा (कॉपर) का शत्रु तत्त्व है? --- गंधक
उगते व डूबते समय सूर्य लाल प्रतीत होता है, क्योंकि? --- लाल रंग का प्रकीर्णन सबसे कम होता है
रेडियोऐक्टिवता की खोज किसने की थी? --- हेनरी बेकरल ने
दो समतल दर्पण एक-दूसरे से 60° के कोण पर झुके हैं। इनके बीच रखी एक गेंद के बने प्रतिबिम्बों की संख्या कितनी होगी? --- पाँच
पानी के अन्दर हवा का एक बुलबुला किस तरह बर्ताव करता है? --- एक अवतल लेंस
इकाइयों की समस्त व्यवस्थाओं में किस इकाई की मात्रा समान होती है? --- विशिष्ट गुरुत्व
यदि कोई मनुष्य समतल दर्पण की ओर 4 मीटर/सेकेण्ड की चाल से आ रहा है, तो दर्पण में मनुष्य का प्रतिबिम्ब किस चाल से आता हुआ प्रतीत होगा? --- 8 मीटर/सेकेण्ड
कारों, ट्रकों और बसों में ड्राइवर की सीट के बगल में कौन-सा दर्पण लगा होता है? --- उत्तल दर्पण
ऐसे तत्त्व जिनमें धातु और अधातु दोनों के गुण पाये जाते हैं वे कहलाते हैं? --- उपधातु
वनस्पति विज्ञान के जनक कौन हैं? --- थियोफ्रेस्टस
निम्नलिखित में से किसमें ध्वनि की चाल सबसे अधिक होगी? --- इस्पात में
एक व्यक्ति घूमते हुए स्टूल पर बांहें फैलाये खड़ा है। एकाएक वह बांहें सिकोड़ लेता है, तो स्टूल का कोणीय वेग --- बढ़ जायेगा
चन्द्रमा पर एक बम विस्फ़ोट होता है। इसकी आवाज़ पृथ्वी पर --- सुनाई नहीं देगी
चन्द्रमा पर वायुमण्डल न होने का कारण है --- पलायन वेग
यदि किसी सरल लोलक की लम्बाई 4% बढ़ा दी जाये, तो उसका आवर्तकाल --- 2% बढ़ जायेगा
एक लड़की झूला झूल रही है। उसके पास एक अन्य लड़की आकर बैठ जाती है, तो झूले का आवर्तकाल --- अपरिवर्तित रहेगा
हम रेडियो की घुण्डी घुमाकर, विभिन्न स्टेशनों के प्रोग्राम सुनते हैं। यह सम्भव है --- अनुनाद के कारण
'वेन्चुरीमीटर' से क्या ज्ञात करते हैं? --- जल के प्रवाह की दर
चौराहों पर पानी के फुहारे में गेंद नाचती रहती है, क्योंकि --- पानी का वेग अधिक होने से दाब घट जाता है
यदि द्रव्यमान परिवर्तित हुए बिना पृथ्वी अपनी वर्तमान त्रिज्या की सिकुड़कर आधी रह जाये तो दिन होगा --- 12 घण्टे का
यदि किसी पिण्ड को पृथ्वी से 11.2 किलोमीटर/सेकेण्ड के वेग से फेंका जाये तो पिण्ड --- पृथ्वी पर कभी नहीं लौटेगा
उपग्रह में समय ज्ञात करने के लिए, अन्तरिक्ष यात्री को क्या प्रयोग करना चाहिए? --- स्प्रिंग घड़ी
यदि पृथ्वी की त्रिज्या 1% कम हो जाये, किन्तु द्रव्यमान वही रहे तो पृथ्वी तल का गुरुत्वीय त्वरण --- 2% घट जायेगा
दाब का मात्रक है? --- पास्कल
खाना पकाने का बर्तन होना चाहिए --- उच्च विशिष्ट ऊष्मा का निम्न चालकता का
झरने में जब जल ऊँचाई से गिरता है तो उसका ताप --- बढ़ जाता है
केल्विन तापमापी में बर्फ़ का गलनांक होता है --- -0° K
बॉटनी शब्द की उत्पत्ति किस भाषा के शब्द से हुई है? --- ग्रीक
क्यूरी (Curie) किसकी इकाई का नाम है? --- रेडियोएक्टिव धर्मिता
किस रंग की तरंग दैर्ध्य सबसे कम होती है? --- बैगनी
कमरे में रखे रेफ़्रीजरेटर का दरवाज़ा खोल दिया जाता है तो कमरे का ताप --- बढ़ जायेगा
इन्द्रधनुष में कितने रंग होते हैं? --- सात रंग
'सेकेण्ड पेण्डुलम' का आवर्तकाल क्या होता है? --- 2 सेकेण्ड
'भारतीय विज्ञान संस्थान' कहाँ स्थित है? --- बैंगलोर में
पराध्वनिक विमानों की चाल होती है --- ध्वनि की चाल से अधिक
भूस्थिर उपग्रह की पृथ्वी से ऊँचाई होती है --- 36,000 किलोमीटर 14.निम्नलिखित में से किस पदार्थ में ऑक्सीजन नहीं है --- मिट्टी का तेल
चिकित्सा शास्त्र के विद्यार्थियों को किसकी शपथ दिलायी जाती है? --- हिप्पोक्रेटस
कार में रेडियेटर का क्या कार्य होता है? --- इंजन को ठण्डा रखना
मनुष्य के शरीर के ताप होता है --- 37° C
दूर दृष्टिदोष से पीड़ित व्यक्ति को --- निकट की वस्तुएँ दिखाई नहीं देती हैं
किताब के ऊपर रखे किसी लेंस को ऊपर उठाने पर यदि मुद्रित अक्षरों का आकार बढ़ता हुआ दिखाई देता है, तो लेंस --- उत्तल है
यदि किसी लेंस से अक्षरों का आकार छोटा दिखाई देता हैं, तो लेंस --- अवतल है
तारे टिमटिमाते हैं --- अपवर्तन के कारण
निम्नलिखित में से कौन एक आवेश रहित कण है? --- न्यूट्रॉन
पौधों की आंतरिक संरचना का अध्ययन क

प्राकृतिक विज्ञान

एक यूकैरियोटिक कोशिका के आरेख में राइबोसोम (३) सहित उपकोशिकीय घटकों के दर्शन
ऑर्गैनेल्स:
(1) केंद्रिका
(2) केन्द्रक
(3) राइबोसोम (छोटे बिन्दु)
(4) वेसाइकल
(5) खुरदुरी अंतर्प्रद्रव्य जालिका (अं जा)
(6) गॉल्जीकाय
(7) कोशिका कंकाल
(8) चिकनी अंतर्प्रद्रव्य जालिका (अं जा)
(9) कणाभसूत्र
(10) रसधानी
(11) कोशिका द्रव
(12) लाइसोसोम
(13) तारककाय
प्राकृतिक विज्ञान प्रकृति और भौतिक दुनिया का व्यवस्थित ज्ञान होता है, या फ़िर इसका अध्ययन करने वाली इसकी कोई शाखा। असल में विज्ञान शब्द का प्रयोग लगभग हमेशा प्रकृतिक विज्ञानों के लिये ही किया जाता है।

प्राणिविज्ञान की शाखाएँ


सम्यक् अध्ययन के लिए प्राणिविज्ञान को कई शाखाओं में विभाजित करना आवश्यक हो गया है। ऐसे अंतर्विभागों में आकारिकी (Morphology), सूक्ष्मऊतकविज्ञान (Histology), कोशिकाविज्ञान (Cystology), भ्रूणविज्ञान (Embryology), जीवाश्मविज्ञान (Palaeontology), विकृतिविज्ञान (Pathology), वर्गीकरणविज्ञान (Taxology), आनुवांशिकविज्ञान (Genetics), जीवविकास (Evolution), पारिस्थितिकी (Ecology) तथा मनोविज्ञान (Psychology) अधिक महत्व के हैं।

आकारिकीसंपादित करें

जंतु भिन्न भिन्न प्रकार के होते हैं। उनके बाह्य लक्षण, शरीर का आकार, विस्तार, वर्ण, त्वचा, बाल, पर, आँख, कान, पैर तथा अन्य अंग भिन्न भिन्न प्रकार के होते हैं। अत: शीघ्र ही स्पष्ट हो गया कि जंतुओं के बाह्य लक्षणों का ज्ञान साधारण बात है। उनकी आंतरिक बनावट से ही कुछ विशेष तथ्य की बातें मालूम हो सकती हैं। अत: उनकी बनावट के अध्ययन पर विशेष ध्यान दिया गया। जंतुओं का चाकुओं और अन्य औजारों से चीरफाड़ कर, काट छाँटकर, अध्ययन शुरू हुआ और सूक्ष्मदर्शी के आविष्कार और प्रयोग से अनेक बातें मालूम हुईं, जिनसे उनके विभाजन में बड़ी सहायता मिलती है। जंतु कोशिकाओं से बने हैं। सब जंतुओं की कोशिकाएँ एक सी नहीं होतीं। ऊतकों से ही जंतुओं के सब अंग उदर, वृक्क आदि बनते हैं। ऊतक भी एक से नहीं होते। कुछ जंतु एक कोशिका से बने हैं, इन्हें एककोशिकीय या प्रोटोजोआ (Protozoa) कहते हैं। इनकी संख्या अपेक्षया थोड़ी है। अधिक जंतु अनेक कोशिकाओं से बने हैं। इन्हें बहुकोशिकीय या मेटाज़ोआ (Metazoa) कहते हैं। इनकी संख्या बहुत बड़ी है। इन जंतुओं की आकारिकी के अध्ययन से पता लगता है कि सब जंतुओं के प्रतिरूप सीमित किस्म के ही हाते हैं, यद्यपि बाह्यदृष्टि से देखने में यह बहुत भिन्न मालूम पड़ते हैं। अधिकांश जंतु रीढ़वाले या कशेरुकी (verterbate) हैं और अपेक्षया कुछ थोड़े से ही अकशेरुकी या अपृष्ठवंशी (invertebrate) हैं।

सूक्ष्मऊतकविज्ञानसंपादित करें

इसके अध्ययन के लिए विभिन्न जंतुओं के ऊतकों को महीन काटकर, उसी रूप में अथवा रंजकों से अभिरंजित कर, सूक्ष्मदर्शी से निरीक्षण कते हैं। रंजक के उपयोग से कोशिकाएँ अधिक स्पष्ट हो जाती हैं पर उससे कोशिकाओं की कोई क्षति नहीं होती। कोशिकाओं को बहुत महीन काटने के लिए (1/1000 मिमी. की मोटाई तक) यंत्र बने हैं, जिन्हें माइक्रोटोम कहते हैं। ऐसे अध्ययन से ऊतकों को सामान्यत: निम्नलिखित चार प्रकार में विभक्त किया गया है :

1. उपकलाऊतक (Epithelial tissue),

2. तंत्रिका ऊतक (Nervous tissue)

3. योजीऊतक (Connective tissue) तथा

4. पेशीऊतक (Muscular tissue)।

कोशिकाविज्ञानसंपादित करें

इसके अंतर्गत जंतुओं की कोशिकाओं का अध्ययन होता है। इनकी कोशिकाओं में जीवद्रव्य (protoplasm) रहता है। कुछ कोशिकाएँ एककोशिकीय होती हैं और कुछ बहुकोशिकीय। जीवद्रव्य सरल पदार्थ नहीं हैं। इनमें बड़ी सूक्ष्म बनावट के अनेक पदार्थ मिले रहते हैं। कोशिकाओं का आनुवंशिकी से बड़ा घनिष्ठ संबंध है। कोशिकाएँ भिन्न भिन्न आकार और विस्तार की होती हैं। सामान्य कोशिका के दो भाग होते हैं: एक केंद्रक होता है और दूसरा उसको घेरे हुए कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) होता है।

भ्रूणविज्ञानसंपादित करें

जब शुक्राणुकोशिका से संयोजन कर अंडकोशिका उद्दीप्त होती है तब उसका भ्रूणविकास प्रारंभ हो जाता है। इससे एक विशिष्ट लक्षण प्रकट होता है। इस प्रक्रिया का जब प्राणिविज्ञानियों ने अनेक जंतुओं में अध्ययन किया, तब उन्हें पता लगा कि सभी जंतुओं में इस प्रक्रिया में बहुत सदृश्य पाया जाता है। अंडों का पहले विदलन होता है। इससे नई कोशिकाएँ गेंदों में बँट जाती हैं। इसके बाद एक द्विस्तरी पदार्थ गैस्टØला (gastrula) बनता है। इसके बाद एक बाह्य उपकला और एक अंतर उपकला (epithelium) बनती है। किसी किसी दशा में एक ठोस पिंड, अंतर्जनस्तर (entoderm), भी बनता है। अंतर्जनस्तर की उत्पत्ति भिन्न भिन्न प्रकार की हाती है। अधिकांश दशा में उत्पत्ति अंतर्वलन (invagilation) द्वारा, अथवा बाह्य उपकला के भीतर मुड़ने के कारण होती है। हैकेल (Haekel) तथा कुछ अन्य प्राणिविज्ञानियों का मत है कि प्राथमिक रीति अंतर्वलन की रीति है। यदि अन्य कोई रीति है तो वह गौण रीति है और प्राथमिक रीति से ही निकलती हैं। गैस्टØला अवस्था के स्थापित होने के बाद, बाह्य त्वचा (ectoderm) और अंतर्जनस्तर के बीच ऊतक बनते हैं, जिसे मध्य जनस्तर कहते हैं। जंतुओं में मध्य जनस्तर कई प्रकार के पाए गए हैं। पर जो बड़े महत्व का समझा जाता है वह है आंत्रगुहा (enterocoele), जिसमें अंतर्जनस्तर से कोटरिका (pocket) के ढकेलने से मध्यजनस्तर बनता है। बाह्य चर्म, अंतर्जनस्तर और मध्य जनस्तर को जनस्तर (germlayer) कहते हैं। इसी स्तर से प्रौढ़ जंतुओं के ऊतक और अन्य अं

प्राणी विज्ञान


प्राणी विज्ञान या जंतु विज्ञान (en:Zoology) (जीव विज्ञान की शाखा है जो जानवरों और उनके जीवन, शरीर, विकास और वर्गीकरण (classification) से सम्बन्धित होती है।

प्राणी की परिभाषासंपादित करें

प्राणी की परिभाषा कई प्रकार से की गई है। कुछ लोग प्राणी ऐसे जीव को कहते हैं जो कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा का सृजन तो नहीं करता, पर जीवनयापन के लिए इन पर निर्भर करता है। इन पदार्थों को प्राणी बाह्य स्त्रोत से ही प्राप्त करता है। इनके सृजन करने वाले पादप जाति के जीव होते हैं, जो अकार्बनिक स्त्रोतों से प्राप्त पदार्थों से इनका सृजन करते हैं।



ये दोनों ही परिभाषाएँ सब प्राणियों पर लागू नहीं होतीं। पादप जाति के कुछ कवक और जीवाणु ऐसे हैं, जो अपना भोजन बाह्य स्त्रोतों से प्राप्त करते हैं। कुछ ऐसे प्राणी भी हैं, जो स्टार्च का सृजन स्वयं करते हैं। अत: प्राणी और पादप में विभेद करना कुछ दशाओं में बड़ा कठिन हो जाता है। यही कारण है कि प्राणिविज्ञान और पादपविज्ञान का अध्ययन एक समय विज्ञान की एक ही शाखा में साथ साथ किया जाता था और उसका नाम जैविकी या जीव विज्ञान (Biology) दिया गया है। पर आज ये दोनों शाखाएँ इतनी विकसित हो गई हैं कि इनका सम्यक् अध्ययन एक साथ करना संभव नहीं है। अत: आजकल प्राणिविज्ञान एवं पादपविज्ञान का अध्ययन अलग अलग ही किया जाता है।

प्राणिविज्ञान का महत्वसंपादित करें

प्राणिविज्ञान का अध्ययन मनुष्य के लिए बड़े महत्व का है। मनुष्य के चारों ओर नाना प्रकार के जंतु रहते हैं। वह उन्हें देखता है और उसे उनसे बराबर काम पड़ता है। कुछ जंतु मनुष्य के लिए बड़े उपयोगी सिद्ध हुए हैं। अनेक जंतु मनुष्य के आहार होते हैं। जंतुओं से हमें दूध प्राप्त होता है। कुछ जंतु ऊन प्रदान करते हैं, जिनसे बहुमूल्य ऊनी वस्त्र तैयार होते हैं। जंतुओं से ही रेशम, मधु, लाख आदि बड़ी उपयोगी वस्तुएँ प्राप्त होती हैं। जंतुओं से ही अधिकांश खेतों की जुताई होती है। बैल, घोड़े, खच्चर तथा गदहे इत्यादि परिवहन का काम करते हैं। कुछ जंतु मनुष्य के शत्रु भी हैं और ये मनुष्य को कष्ट पहुँचाते, फसल नष्ट करते, पीड़ा देते और कभी कभी मार भी डालते हैं। अत: प्राणिविज्ञान का अध्ययन हमारे लिए महत्व रखता है।

बौद्धिक विकास के कारण मनुष्य अन्य प्राणियों से भिन्न होता है, पर शारीरिक बनावट और शारीरिक प्रणाली में अन्य कुछ प्राणियों से बड़ी समानता रखता है। इन कुछ प्राणियों की इद्रियाँ और कार्यप्रणाली मनुष्य की इंद्रियाँ और कार्यप्रणाली से बहुत मिलती जुलती है। इससे अनेक नई ओषधियों के प्रभाव का अध्ययन करने में इन प्राणियों से लाभ उठाया गया है और अनेक नई नई ओषधियों के आविष्कार में सहायता मिली है।

इतिहाससंपादित करें

प्राणियों का अध्ययन बहुत प्राचीन काल से होता आ रहा है। इसका प्रमाण वे प्राचीन गुफाएँ हैं जिनकी पत्थर की दीवारों पर पशुओं की आकृतियाँ आज भी पाई जाती हैं। यूनानी दार्शनिक अरस्तू ने ईसा के 300 वर्ष पूर्व जंतुओं पर एक पुस्तक लिखी थी। गैलेना (Galena) एक दूसरे रोमन वैद्य थे, जिन्होंने दूसरी शताब्दी में पशुओं की अनेक विशेषताओं का बड़ी स्पष्टता से वर्णन किया है। यूनान और रोम के अन्य कई ग्रंथकारों ने प्रकृतिविज्ञान पर पुस्तकें लिखीं हैं, जिनमें जंतुओं का उल्लेख है। बाद में लगभग हजार वर्ष तक प्राणिविज्ञान भुला दिया गया था। 16वीं सदी में लोगों का ध्यान फिर इस विज्ञान की ओर आकर्षित हुआ। उस समय चिकित्सा विद्यालयों के अध्यापकों का ध्यान इस ओर विशेष रूप से गया और वे इसके अध्ययन में प्रवृत्त हुए। 17वीं तथा 18वीं शताब्दी में इस विज्ञान की विशेष प्रगति हुई। सूक्ष्मदर्शी के आविष्कार के बाद इसका अध्ययन बहुत व्यापक हो गया। आधुनिक प्राणिविज्ञान की प्राय: इसी समय नींव पड़ी और जंतुओं के नामकरण और आकारिकी की ओर विशेष रूप से ध्यान दिया गया। लिनियस ने "दि सिस्टम ऑव नेचर" (1735 ई.) नामक पुस्तक में पहले पहल जंतुओं के नामकरण का वर्णन किया है। उस समय तक ज्ञात जंतुओं की संख्या बहुत अधिक हो गई थी और उनका वर्गीकरण आवश्यक हो गया था।

शाखाएँसंपादित करें

प्राणिविज्ञान का विस्तार आज बहुत बढ़ गया है। सम्यक् अध्ययन के लिए इसे कई शाखाओं में विभाजित करना आवश्यक हो गया है। ऐसे अंतर्विभागों में :

आकारिकी (Morphology),
सूक्ष्मऊतकविज्ञान (Histology),
कोशिकाविज्ञान (Cystology),
भ्रूणविज्ञान (Embryology),
जीवाश्मविज्ञान (Palaeontology),
विकृतिविज्ञान (Pathology),
वर्गीकरणविज्ञान (Taxology),
आनुवांशिकविज्ञान (Genetics),
जीवविकास (Evolution),
पारिस्थितिकी (Ecology) तथा
पछी विज्ञान (ओर्निथोलोजी)
मनोविज्ञान (Psychology)
अधिक महत्व के हैं। इनका विस्तृत विवरण प्राणिविज्ञान की शाखाएँ के अन्तर्गत एखिये॥

इबोला वायरस रोग


1976 की फोटो जिसमें दो नर्सें, एक इबोला वायरस के रोगी, मेइंगा एन के सामने खड़ी हुई हैं; गभीर आंतरिक खून बहने के कारण कुछ दिनों के बाद रोगी की मृत्यु हो गई थी।
आईसीडी-१० A98.4
आईसीडी-९ 065.8
डिज़ीज़-डीबी 18043
मेडलाइन प्लस 001339
ईमेडिसिन med/626
एम.ईएसएच D019142
इबोला विषाणु रोग (EVD) या इबोला हेमोराहैजिक बुखार (EHF) इबोला विषाणु के कारण लगने वाला अत्यन्त संक्रामक एवं घातक रोग है। आम तौर पर इसके लक्षण वायरस के संपर्क में आने के दो दिनों से लेकर तीन सप्ताह के बीच शुरू होता है, जिसमें बुखार, गले में खराश, मांसपेशियों में दर्द और सिरदर्दहोता है। आम तौर पर मतली, उल्टी और डायरिया होने के साथ-साथ जिगर और गुर्दाका कामकाज धीमा हो जाता है। इस स्थिति में, कुछ लोगों को खून बहने की समस्या शुरू हो जाती है।[1]

यह वायरस संक्रमित जानवर (सामान्यतया बंदर या फ्रुट बैट (एक प्रकार का चमगाद्ड़)के खून या [शरीर के तरल पदार्थ]] के संपर्क में आने से होता है। (ref name=WHO2014/> प्राकृतिक वातावरण में हवा से इसके फैलने का कोई प्रमाण नहीं मिलता है।[2] ऐसा माना जाता है कि फ्रुट बैट (एक प्रकार के चमगादड़) प्रभावित हुए बिना यह वायरस रखते और फैलाते हैं। जब मानवीय संक्रमण होता है तो यह बीमारी लोगों के बीच फैल सकती है। पुरुष उत्तरजीवी इस वायरस को वीर्य के माध्यम से तकरीबन दो महीने तक संचरित कर सकते हैं। रोग की पहचान करने के लिए, आम तौर पर समान लक्षण वाली दूसरी बीमारियों जैसे मलेरिया, हैज़ा और अन्य वायरल हेमोराहैजिक बुखार को पहले अपवर्जित कर दिया जाता है। रोग की पहचान की पुष्टि करने के लिए खून के नमूनों को वायरल एंटीबॉडीस, वायरल आरएनए, या खुद वायरस के लिए जांच की जाती है।[1]

संक्रमित बंदरों और सुअरों से मनुष्य में यह बीमारी फैलने से कम करना इसके रोकथाम में शामिल है। जानवरों में संक्रमण की जांच करके और संक्रमण पाए जाने पर उनके शरीर को समुचित तरीके से नष्ट करके इसकी रोकथाम की जा सकती है। मांस को उचित तरीके से पकाना और मांस से संबंधित कामकाज करते समय हाथों पर निवारक कपड़े पहनने से भी इसके सहायता मिल सकती है, क्योंकि ऐसी बीमारी से ग्रसित व्यक्ति के आसपास होने पर आप निवारक कपड़े और वाशिंग हैंड्स पहनते हैं। बीमारी से ग्रसित व्यक्ति के शरीर के तरल पदार्थों और उत्तकों के नमूनों का रख-रखाव विशेष सावधानी के साथ करना चाहिए।[1]

इस बीमारी के लिए कोई विशिष्ट उपचार नहीं है; संक्रमित लोगों की सहायता की कोशिशों में उन्हें ओरल रिहाइड्रेशन थेरेपी (पीने के लिए थोड़ा-सा मीठा और नमकीन पानी देना) या इंट्रावेनस फ्लुड्स देना शामिल है।[1] इस बीमारी में मृत्य दरबेहद उच्च है: अक्सर इस वायरस के संक्रमित होने वाले 50% से 90% तक लोग मौत के शिकार हो जाते हैं।[1][3] ईवीडी की पहचान सबसे पहले सूडान और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में की गई थी। इस बीमारी का प्रकोप आम तौर उप-सहारा अफ्रीका के उष्ण-कटिबंधीय क्षेत्रों में होता है।[1] 1976 (जब पहली बार इसकी पहचान की गई थी) से 2013 तक, हर वर्ष 1,000 तक लोग इससे संक्रमित हो जाते हैं।[1][4] अब तक का सबसे बड़ा प्रकोप अभी जारी है2014 पश्चिम अफ्रीका इबोला प्रकोप, जिसमें गुआना, सिएरा लियोन, लाइबेरिया और संभवत: नाइजीरिया प्रभावित हो रहे हैं।[5][6] अगस्त 2014 तक 1600 से अधिक मामलों की पहचान की गई है।[7] इसके लिए टीका विकसित करने के प्रयास जारी हैं; हालांकि अभी तक ऐसा कोई टीका मौजूद नहीं है।[1]

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Vinod choudhary