सम्यक् अध्ययन के लिए प्राणिविज्ञान को कई शाखाओं में विभाजित करना आवश्यक हो गया है। ऐसे अंतर्विभागों में आकारिकी (Morphology), सूक्ष्मऊतकविज्ञान (Histology), कोशिकाविज्ञान (Cystology), भ्रूणविज्ञान (Embryology), जीवाश्मविज्ञान (Palaeontology), विकृतिविज्ञान (Pathology), वर्गीकरणविज्ञान (Taxology), आनुवांशिकविज्ञान (Genetics), जीवविकास (Evolution), पारिस्थितिकी (Ecology) तथा मनोविज्ञान (Psychology) अधिक महत्व के हैं।
आकारिकीसंपादित करें
जंतु भिन्न भिन्न प्रकार के होते हैं। उनके बाह्य लक्षण, शरीर का आकार, विस्तार, वर्ण, त्वचा, बाल, पर, आँख, कान, पैर तथा अन्य अंग भिन्न भिन्न प्रकार के होते हैं। अत: शीघ्र ही स्पष्ट हो गया कि जंतुओं के बाह्य लक्षणों का ज्ञान साधारण बात है। उनकी आंतरिक बनावट से ही कुछ विशेष तथ्य की बातें मालूम हो सकती हैं। अत: उनकी बनावट के अध्ययन पर विशेष ध्यान दिया गया। जंतुओं का चाकुओं और अन्य औजारों से चीरफाड़ कर, काट छाँटकर, अध्ययन शुरू हुआ और सूक्ष्मदर्शी के आविष्कार और प्रयोग से अनेक बातें मालूम हुईं, जिनसे उनके विभाजन में बड़ी सहायता मिलती है। जंतु कोशिकाओं से बने हैं। सब जंतुओं की कोशिकाएँ एक सी नहीं होतीं। ऊतकों से ही जंतुओं के सब अंग उदर, वृक्क आदि बनते हैं। ऊतक भी एक से नहीं होते। कुछ जंतु एक कोशिका से बने हैं, इन्हें एककोशिकीय या प्रोटोजोआ (Protozoa) कहते हैं। इनकी संख्या अपेक्षया थोड़ी है। अधिक जंतु अनेक कोशिकाओं से बने हैं। इन्हें बहुकोशिकीय या मेटाज़ोआ (Metazoa) कहते हैं। इनकी संख्या बहुत बड़ी है। इन जंतुओं की आकारिकी के अध्ययन से पता लगता है कि सब जंतुओं के प्रतिरूप सीमित किस्म के ही हाते हैं, यद्यपि बाह्यदृष्टि से देखने में यह बहुत भिन्न मालूम पड़ते हैं। अधिकांश जंतु रीढ़वाले या कशेरुकी (verterbate) हैं और अपेक्षया कुछ थोड़े से ही अकशेरुकी या अपृष्ठवंशी (invertebrate) हैं।
सूक्ष्मऊतकविज्ञानसंपादित करें
इसके अध्ययन के लिए विभिन्न जंतुओं के ऊतकों को महीन काटकर, उसी रूप में अथवा रंजकों से अभिरंजित कर, सूक्ष्मदर्शी से निरीक्षण कते हैं। रंजक के उपयोग से कोशिकाएँ अधिक स्पष्ट हो जाती हैं पर उससे कोशिकाओं की कोई क्षति नहीं होती। कोशिकाओं को बहुत महीन काटने के लिए (1/1000 मिमी. की मोटाई तक) यंत्र बने हैं, जिन्हें माइक्रोटोम कहते हैं। ऐसे अध्ययन से ऊतकों को सामान्यत: निम्नलिखित चार प्रकार में विभक्त किया गया है :
1. उपकलाऊतक (Epithelial tissue),
2. तंत्रिका ऊतक (Nervous tissue)
3. योजीऊतक (Connective tissue) तथा
4. पेशीऊतक (Muscular tissue)।
कोशिकाविज्ञानसंपादित करें
इसके अंतर्गत जंतुओं की कोशिकाओं का अध्ययन होता है। इनकी कोशिकाओं में जीवद्रव्य (protoplasm) रहता है। कुछ कोशिकाएँ एककोशिकीय होती हैं और कुछ बहुकोशिकीय। जीवद्रव्य सरल पदार्थ नहीं हैं। इनमें बड़ी सूक्ष्म बनावट के अनेक पदार्थ मिले रहते हैं। कोशिकाओं का आनुवंशिकी से बड़ा घनिष्ठ संबंध है। कोशिकाएँ भिन्न भिन्न आकार और विस्तार की होती हैं। सामान्य कोशिका के दो भाग होते हैं: एक केंद्रक होता है और दूसरा उसको घेरे हुए कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) होता है।
भ्रूणविज्ञानसंपादित करें
जब शुक्राणुकोशिका से संयोजन कर अंडकोशिका उद्दीप्त होती है तब उसका भ्रूणविकास प्रारंभ हो जाता है। इससे एक विशिष्ट लक्षण प्रकट होता है। इस प्रक्रिया का जब प्राणिविज्ञानियों ने अनेक जंतुओं में अध्ययन किया, तब उन्हें पता लगा कि सभी जंतुओं में इस प्रक्रिया में बहुत सदृश्य पाया जाता है। अंडों का पहले विदलन होता है। इससे नई कोशिकाएँ गेंदों में बँट जाती हैं। इसके बाद एक द्विस्तरी पदार्थ गैस्टØला (gastrula) बनता है। इसके बाद एक बाह्य उपकला और एक अंतर उपकला (epithelium) बनती है। किसी किसी दशा में एक ठोस पिंड, अंतर्जनस्तर (entoderm), भी बनता है। अंतर्जनस्तर की उत्पत्ति भिन्न भिन्न प्रकार की हाती है। अधिकांश दशा में उत्पत्ति अंतर्वलन (invagilation) द्वारा, अथवा बाह्य उपकला के भीतर मुड़ने के कारण होती है। हैकेल (Haekel) तथा कुछ अन्य प्राणिविज्ञानियों का मत है कि प्राथमिक रीति अंतर्वलन की रीति है। यदि अन्य कोई रीति है तो वह गौण रीति है और प्राथमिक रीति से ही निकलती हैं। गैस्टØला अवस्था के स्थापित होने के बाद, बाह्य त्वचा (ectoderm) और अंतर्जनस्तर के बीच ऊतक बनते हैं, जिसे मध्य जनस्तर कहते हैं। जंतुओं में मध्य जनस्तर कई प्रकार के पाए गए हैं। पर जो बड़े महत्व का समझा जाता है वह है आंत्रगुहा (enterocoele), जिसमें अंतर्जनस्तर से कोटरिका (pocket) के ढकेलने से मध्यजनस्तर बनता है। बाह्य चर्म, अंतर्जनस्तर और मध्य जनस्तर को जनस्तर (germlayer) कहते हैं। इसी स्तर से प्रौढ़ जंतुओं के ऊतक और अन्य अं
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